Surprise Me!

स्वयं को सीमाओं के परे जानो || आचार्य प्रशांत,अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-27 2 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१० अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />आत्मा ब्रह्मेति निश्चित्य भावाभावौ च कल्पितौ ।<br />निष्कामः किं विजानाति किं ब्रूते च करोति किम् ॥८॥<br /><br />आत्मा ही ब्रह्म है, और भाव अभाव कल्पित हैं। ऐसा निश्चय होते ही फिर निष्काम ज्ञानी फिर क्या जाने, क्या कहे, क्या करे?<br /><br />अयं सोऽहमयं नाहं इति क्षीणा विकल्पना ।<br />सर्वमात्मेति निश्चित्य तूष्णींभूतस्य योगिनः ॥९॥<br /><br />सब आत्मा ही है, ऐसा निश्चय कर के जो चुप हो गया है, उस पुरुष के लिए ये मैं हूँ, ये मैं नहीं हूँ, इत्यादि विकल्पनाएँ शांत हो जाती हैं।<br /><br />प्रसंग:<br />आत्मा क्या है?<br />आत्मा को ब्रह्म क्यों कहा गया है?<br />परमात्मा क्या है?<br />स्वयं को सीमाओं के परे कैसे जानो?

Buy Now on CodeCanyon